Boys Hostel (आखिरी भाग )
मेरी नजर उस पर जैसे ही पड़ी तो मेरी दोनों आंखें मानो बाहर निकल आई हो.. पूरा गला सूख गया. क्योंकि इस वक्त मेरे उस दोस्त के सर के बाल लड़कियों की तरह एकदम अचानक से लंबे हो गए थे और गीले होकर फर्श पर लोट रहे थे... उसकी दोनों आंखें सुर्ख लाल थी.
" विनोद ..? "उसको देख कर हकलाते हुए मैंने उसका नाम लिया
उसने एक पल के लिए मुझे देखा लेकिन अगले ही पल वह फिर से जमीन में खाने के दानों को बटोरने लगा और मैं उसे ऐसा करते हुए सिर्फ देखता रहा...
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मेरी समझ में इस वक्त कुछ भी नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है... जहां कुछ देर पहले यहां इतने लोग थे वह एक पल में अचानक से चले कहां गए. मेरी प्लेट में अचानक से पानी कैसे भर गया और सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात तो यह थी कि मैं इस वक्त यहां जमीन पर कैसे गिर पड़ा और विनोद ऐसे बर्ताव क्यों कर रहा है.. क्या कोई मेरे साथ बुरा मजाक कर रहा है ? या सच में ऐसा हो रहा है ?
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" ना.. यह पक्का किसी का बहुत ही बड़ा मजाक है, वरना विनोद के बाल इतने जल्दी कैसे बढ़ जाते...?? और उसकी आंखें लाल नहीं होती.." मैंने कुछ बोलना चाहा, विनोद को आवाज देनी चाहिए लेकिन आवाज जैसे गले से बाहर ही नहीं आ रही थी..
मेरा मुंह खुलता और बंद हो जाता है.. लगभग आधे घंटे तक वहां जमीन पर पड़ा मै कुछ बोलने की कोशिश करता रहा और विनोद वहां आसपास बिखरे हुए दानों को समेटता रहा और जब उसने वहां बिखरे सभी दानों को समेट लिया तो अपने दोनों हाथों से उन दानों को उठा कर मेरे पास आया.., उसके लंबे बाल उसके खड़े होने के बावजूद फर्श से टकरा रहे थे.... मानो हर बीत रहे एक -एक सेकंड के साथ उसके बाल बढ़ रहे हो...?
" आज का खाना बहुत गिला गिला है, दाल चावल के दाने पानी में उतर आए हैं इसलिए मैं जमीन में पड़े दानों को समेट कर खा रहा हूं तू भी खाएगा...?"
मैंने तुरंत ना में गर्दन हिला दी जिससे वह गुस्सा हो गया और मेरे पास आते हुए वह बोला..
" मैं तो मर चुका हूं, तूने तो खुद मुझे सपने में फांसी लगाते हुए देखा, मेरी जुबान बाहर आ गई थी और आंखें सफेद होते हुए तूने खुद देखा है... मजा आया था ना देख कर... सच -सच बता... "
उसने एक मुट्ठी भर उन दानों को फिर से नीचे से उठाया और खाते हुए बोला...
" बोल.. बोल.. तूने देखा है ना मुझे मरते हुए..? मेरी जीभ जब मेरे दांतो के बीच फंस गई थी और जब मेरी जान मेरे शरीर से निकाल रही थी..? "
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मेरी फट के चार हो गई.... इतना जिंदगी में मैं कभी नहीं डरा था. उस वक्त मुझे उस स्थिति से निकालने के लिए यदि कोई मेरी मारने का प्रस्ताव भी रखे .. तो वह प्रस्ताव भी मुझे स्वीकार होता. मैं बस जल्द से जल्द वहा से निकलना चाहता था.. वह भी जिंदा... मेरी हालत बहुत खराब थी. मैं बेजान सा नीचे फर्श पर पड़ा हुआ, विनोद को देखता रहा. मैंने अपने हाथ पैर भी पटके.. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ.. मैं मानो वहां पर फर्श से चिपक कर रह गया था, मेरे हाथ पैर हिल तक नहीं रहे थे. विनोद नीचे फर्श पर पडे सभी डानो को खाने के बाद हँसते हुए सुर्ख लाल आँखों से मुझे घूरते हुए मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा करके मुझे सूंघने लगा... कुछ देर तक उसने ऐसा ही किया और फिर मेरे कान के पास अचानक जोर से इस कदर चिल्लाया कि.. मै भी डर के मारे चिल्लाने लगा और वही, उस वक़्त पैंट मे ही पेशाब कर दिया...
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और फिर मेरी आंख खुल गई. सपने में हाथ पैर हिलाने की कोशिश में, हकीकत में मैंने एक लात दीवार पर दे मारी थी.. मेरा घुटना सीधे दीवार से टकराया था, जिससे मेरा बिस्तर सटा हुआ था. जिसका दर्द अब भी मेरे घुटने में था. मैं तुरंत उठ कर बैठा और सोचने लगा की अभी हो क्या रहा है.. हो क्या रहा था और आगे क्या होगा...?? और थोड़ी देर बाद मैं जब नॉर्मल हुआ तो मुझे समझ आया कि मैं सपने के अंदर सपना देख रहा था.
" बड़ा भयंकर सपना था यार... पूरी तरह से फट गई, थोड़ी देर और वहां रहता है तो.. यहाँ वास्तविकता मे मूत देता ". लंबी -लम्बी सांस लेकर बाहर छोड़ते हुए मैंने खुद को रिलैक्स किया...
मैं अभी रिलैक्स हो ही रहा था कि,, किसी के चीखने की आवाज मेरे कानों में पड़ी. आवाज, जिस तरफ हॉस्टल में बाथरूम था उस तरफ से आई थी.... इसलिए मेरी रूह खौफ के कारण फिर से कांप उठी . मैंने दीवार मे टंगी घड़ी में टाइम देखा, सुबह के 9:00 बज रहे थे, मैं सपने की तरह हकीकत में भी डरते हुए बाथरूम की तरफ बढ़ा... पूरे रास्ते मैं यही दुआ करता रहा कि वैसा कुछ भी ना हुआ हो जैसा सपने में मैंने देखा था.. लेकिन हुआ वही जो मैं नहीं चाहता था, हुआ वही जो मैंने सपने में देखा था.. मैं डर के कारण बाथरूम के अंदर तक नहीं गया.. लेकिन कुछ दोस्तों ने, जो अंदर गए थे उन्होंने बताया कि विनोद ने .. बाथरूम के छत में लगे हुक से लटक कर अपनी जान दे दी है. एक बार फिर से, मुझे सपने में मेरे साथ घटित हुई सारी घटनाएं मेरे दिमाग में चलने लगी.
मैं अजीबो गरीब बर्ताव करने लगा, जिस पर मेरे दोस्तों ने सोचा कि विनोद की मौत के कारण मैं ऐसा बर्ताव कर रहा हूं.. लेकिन यह सच नहीं था, बिल्कुल भी नहीं था.. विनोद तो मेरा कोई खास दोस्त भी नहीं था और हाल ही के दिनों में मेरी उससे लड़ाई भी हुई थी.. सच तो कुछ और था. विनोद के शरीर को उतार कर घर भेज दिया गया और सब आपस में बात करने लगे कि विनोद ने ऐसा क्यों किया होगा.? उसी आत्महत्या के पीछे का राज क्या था, यह किसी को नहीं पता था और शायद ही किसी को पता चले... ना तो उसके खास दोस्तों को कुछ पता था और ना ही उसके मां-बाप को इस बात की कोई खबर थी कि उनके इकलौते बेटे ने आखिर ये क्यों किया... और ना ही, स्कूल के टीचर या फिर पुलिस के हाथ कुछ लगा. लोग सर कयास लगाए जा रहे थे कि शायद किसी लड़के के साथ विनोद का समलैंगिग रिश्ता था और उसने अब वो रिश्ता तोड़ दिया था.. जिसके कारण विनोद ने ये कदम उठाया था.
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जैसे जैसे दिन ढल रहा था एक अजीब सा ख्वाब मेरे अंदर अपना डेरा जमाने लगा था.. मैं उस दिन बहुत डर चुका था और चाहता था कि आज रात ही ना हो.. आज क्या बल्कि किसी भी दिन रात ना हो.. मै वहा से दूर भाग जाना चाहता था कहीं भी दुनिया के किसी भी कोने में... लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता था और ना ही मैंने ऐसा कुछ किया.. मैं वही हॉस्टल में रुका. किसी एक के चले जाने से किसी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता. हॉस्टल में रहने वाले लड़कों को भी नहीं पड़ा.. शाम होते तक सब उसी रंग में लौट आए जिस रंग में वो अपनी जिंदगी जीते थे. जब शाम को 7:00 बजे तक मेरे साथ कुछ भी नहीं हुआ तो मैं भी थोड़ा रिलैक्स हो गया और सोचा कि मेरे उस सपने का ताल्लुक बस यही तक था. मैंने सपने वाली बात किसी को नहीं बताई थी. और अब मेरे दिल की धड़कन जो सुबह से बढ़ी हुई थी, शांत होने लगी थी. लेकिन तभी...........
मेरे दिल की धड़कनों को दोबारा बढ़ाते हुए मेरे दोस्त ने जो कि अभी अभी भोजनालय से आया था.. वह बोला...
" साला आज का खाना बिल्कुल गिला गिला था, दाल चावल के दाने प्लेट में ऊपर तैर रहे थे और भोजनालय में भिखारी कब से आने लगे...? "इतना सुनकर ही मेरा कलेजा मेरे मुंह को आ गया.. लेकिन फिर उसने मेरे कलेजे को भी चीरते हुए आगे बोला...
"एक लड़का जिसके बाल लड़कियों की तरह लंबे और गीले थे, वह साला जमीन में गिरे हुए दानों को बटोर रहा था... उसका चेहरा देखा नहीं, पर कपड़े उसके जाने पहचाने लग रहे थे..."
मेरी हालत उस वक्त ऐसी थी कि मैं अपने दिल की हर एक धड़कनों को साफ-साफ सुन सकता था, गिन सकता था और गिन भी रहा था. मैंने उस पल अपने बुरे ख्वाब को हकीकत की काली चादर पहन कर.. सच का रूप लेते हुए देखा., उसके दो-तीन दिन बाद तक मेरी हालत बद से बदतर रही.. अक्सर रातों को मेरी नींद खुल जाती थी और मुझे लगता कि विनोद दरवाजे में खड़ा है और मुझे पुकार रहा है.. कई बार तो जब रात मे सोते वक़्त मै करवटे बदलता तो वो मुझे मेरे रूम के पंखे से लटका हुआ दिखाई देता... और मै जोर से चिल्ला उठता...
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जैसे जैसे समय बितता गया सब कुछ नॉर्मल होता गया, अब मैं रात को बेफिक्र खर्राटे मार कर सोता हूं, अब मुझे विनोद की कोई झलक नहीं दिखाई देती है.. लेकिन फिर भी कुछ सवाल, आज तक मेरी जहन मैं चुभ रहा है कि..
क्या विनोद उस दिन सच में भोजनालय में मौजूद था ?
क्या वह लंबे लंबे बालों वाला लड़का जिसे मेरा दोस्त भिखारी कह रहा था, वह विनोद था?
क्या वहां मेरा इंतजार कर रहा था...?
कभी-कभी एक बुरा ख्वाब एक बुरी हकीकत बन कर सामने आता है, वह इतना बुरा और भयावह होता है कि हमारी जिंदगी कि समझ और परख करने की सभी इन्द्रियों, क्षमताओं को तोड़कर चकनाचूर कर देता है. सबके साथ कभी -कभी ऐसा होता है... जब उसे समझ नहीं आता कि ये क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है... मेरे साथ भी हुआ.
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((यह कहानी मेरे द्वारा लिखी जा रही webseries ~ 8th semester के एक छोटे से हिस्से को बड़ा करके लिखा गया है.. 😋))
Yug Purush
11-Aug-2021 06:44 PM
Thanx............... 🌹🌹🌹🌹
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🤫
11-Aug-2021 06:28 PM
सपने के अंदर सपना, उसकी तो वैसे ही हालत खराब हो गयी डर से....उस पर सस्पेंस उसके दोस्त ने हूबहू सपने को हकीकत में पटक दिया..नाइस स्टोरी
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